Chingari Koi Bhadke (चिंगारी कोइ भड़के - Amar Prem)

चिंगारी कोइ भड़के, तो सावन उसे बुझाये
सावन जो अगन लगाये , उसे कौन बुझाये
पतझड जो बाग़ उजाड़े, वो बाग़ बहार खिलाये
जो बाग़ बहार में उजड़े, उसे कौन खिलाये
उसे कौन खिलाये

हम से मत पूछो कैसे, मंदिर टूटा सपनों का
लोगों की बात नहीं हहैं, ये किस्सा हैं अपनों का
कोइ दुश्मन ठेंस लगाये, तो मीत जिया बहलाये
मनमीत जो घांव लगाये , उसे कौन मिटाये
उसे कौन मिटाये 

ना जाने क्या हो जाता, जाने हम क्या कर जाते
पीते हैं तो ज़िंदा हैं, ना पिते तो मर जाते
दुनियाँ जो प्यासा रखे, तो मदिरा प्यास बुझाये
मदिरा जो प्यास लगाये, उसे कौन बुझाये
उसे कौन बुझाये

माना तूफ़ान के आगे, नहीं चलता जोर किसी का
मौजों का दोष नहीं हैं, ये दोष हैं और किसी का
मज़धार में नैय्या डोले, तो मांझी पार लगाये
मांझी जो नाव डुबोये, उसे कौन बचाये 
उसे कौन बचाये
 
Chingari Koi Bhadke (चिंगारी कोइ भड़के - Amar Prem) Chingari Koi Bhadke (चिंगारी कोइ भड़के - Amar Prem) Reviewed by Sourabh Soni on Tuesday, November 05, 2013 Rating: 5

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